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कांच की चूड़ियों के उद्योग के लिए नई चुनौती बना जलवायु परिवर्तन

नई दिल्ली। अगली दफ़ा जब आप किसी युवती या महिला के हाथों में या फिर दुकान पर चमचमाती चूड़ियों को देखें तो एक बार जलवायु परिवर्तन के बारे में जरूर सोचिएगा। यह कल्पना से परे नहीं बल्कि लाखों मजदूरों की जीती-जागती हकीकत है, जो बढ़ते तापमान की मार और भट्टी से निकलती गर्मी को झेलने के साथ-साथ शरीर में कई बीमारियों को पालने के लिए मजबूर हैं। चूड़ियों के प्रसिद्ध शहर फिरोजाबाद में कारीगर पीढ़ियों से भट्टी की गर्मी को झेलते हुए कांच से चूड़ियां बनाते रहे हैं। काम करने के लिए परिस्थितियां पहले से ही खतरनाक थीं और अब इन मजदूरों का नया दुश्मन है जलवायु परिवर्तन।
जलवायु परिवर्तन एक हजार करोड़ रुपए के इस उद्योग के भविष्य को प्रभावित कर रहा है। इस उद्योग से करीब पांच लाख लोग अपनी गुजर बसर कर रहे हैं। इस पारंपरिक उद्योग में काम करने वाली आस्था देवी पिछले एक महीने में दो बार अस्पताल में भर्ती हो चुकी हैं। आस्था को बार-बार शरीर में पानी की कमी की शिकायत से जूझना पड़ा और अब उन्हें लगता है कि न जाने कब तक उनका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आस्था (35) ने बताया, ऐसा लगता है कि जैसे कि हम नरक में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, पहले हमें सिर्फ गर्मी ही झेलनी पड़ती थी लेकिन अब बढ़ता तापमान असहनीय होता जा रहा है। हममें से कई लोग बीमार पड़ गए लेकिन हमारे पास काम करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है। हालांकि अब डर सताता है कि कितने दिन और?
चूड़ियों के कारखाने आमतौर पर छोटे-छोटे घरों में बने होते हैं, जहां हवा के आने-जाने के लिए न तो उचित जगह होती है और न ही इकाई को ठंड करने के लिए कोई दूसरा साधन। जब गर्मी का मौसम अपने चरम पर होता है तो इन कारखानों के अंदर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक पहुंच जाता है। इस गर्मी में जब बाहर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तब फैक्ट्री के अंदर 50 डिग्री सेल्सियस का तापमान अंदर काम कर रहे लोगों को झुलसा देने के लिए काफी है। कारखानों में काम कर रहे लोग अक्सर गर्मी से थक जाते हैं, उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है और उन्हें गर्मी से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
राजेश कुमार (22) ने कहा, दोपहर होते-होते मुझे लगना लगता है कि मेरा दम घुट रहा है। मेरा सिर घूमने लगता है और मेरी खाल झुलसने लगती है। हम बहुत सारा पानी पीते हैं लेकिन वह पर्याप्त नहीं होता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि मैं बस गिरने ही वाला हूं। युवक ने कहा, कभी-कभी तो हमें सांस लेने के लिए उठना पड़ता है। हमारे साथ काम करने वाले बुजुर्गों के लिए तो और भी मुश्किल होती है क्योंकि वे पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे होते हैं।
मधुमेह रोगी 50 वर्षीय कमलेश चूड़ी के कारखाने में भट्टी पर काम करते हैं। उनका कहना है, शरीर में पानी की कमी के कारण हममें से कई को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पतालों में हमें सिर्फ खारे पानी (सेलाइन वाटर) की नली लगाई गई और हम भी सिर्फ उसका ही खर्चा उठा सकते हैं। मैं 300 रुपए रोज कमाता हूं। इतनी कम आय में कैसे अस्पताल का भुगतान कर सकते हैं।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और अल नीनो प्रभाव ने भारत सहित पूरे एशिया में इस बार भीषण गर्मी में बहुत योगदान दिया है। वर्ष 2024 में हर महीने गर्मी के वैश्विक रिकॉर्ड टूट रहे हैं। यह प्रवृत्ति वर्ष 1850 के बाद से रिकॉर्ड किए गए इस साल सबसे गर्म जनवरी से शुरू हुई। उसके बाद मार्च का महीना सबसे गर्म रहा और अब मई 2024 में लगातार 12वें महीने रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान दर्ज किया गया।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कांच के कामगारों के लिए दीर्घकालिक निहितार्थों पर चिंता व्यक्त की है। स्थानीय चिकित्सक डॉ. साजिद अहमद ने कहा, लंबे समय तक भीषण गर्म तापमान में रहने से हृदय रोग और अस्थमा सहित कई जटिल स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। साजिद के पास चूड़ी के कारखानों में काम करने वाले लोग इलाज के लिए आते रहते हैं। उन्होंने कहा, हम लू लगने, सांस लेने में दिक्कत और शरीर में पानी की कमी के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। यह चिंताजनक है।

Kapil Kumar
Author: Kapil Kumar

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