नई दिल्ली। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निदेशक डी पी सकलानी ने अभिभावकों के अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों के प्रति आकर्षण पर अफसोस जताते हुए कहा है कि यह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से कम नहीं है, क्योंकि सरकारी स्कूल अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। एनसीईआरटी के प्रमुख सकलानी ने कहा कि अंग्रेजी में विषय-वस्तु को रटने की प्रथा ने बच्चों में ज्ञान की हानि की है और उन्हें उनकी जड़ों और संस्कृति से दूर कर दिया है। उन्होंने कहा, माता-पिता अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के प्रति आकर्षित हैं, वे अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं, भले ही वहां शिक्षक न हों या वे पर्याप्त प्रशिक्षित न हों। यह आत्मघात से कम नहीं है और यही कारण है कि नई (राष्ट्रीय) शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर दिया गया है।
सकलानी ने कहा, शिक्षण मातृभाषा पर आधारित क्यों होना चाहिए? क्योंकि जब तक हम अपनी मातृभाषा, अपनी जड़ों को नहीं समझेंगे, हम कुछ भी कैसे समझेंगे? और बहुभाषी दृष्टिकोण का मतलब यह नहीं है कि किसी एक भाषा में शिक्षण समाप्त किया जाए, बल्कि जोर कई भाषाओं को सीखने पर है। एनसीईआरटी प्रमुख ने ओडिशा की दो आदिवासी भाषाओं में प्राइमर (पुस्तकें) विकसित करने के केंद्रीय शिक्षा मंत्री की एक पहल का हवाला दिया, ताकि छात्रों को उनके स्थानीय स्वभाव और संस्कृति पर आधारित चित्रों, कहानियों और गीतों की मदद से पढ़ाया जा सके, ताकि उनके बोलने के कौशल, सीखने के परिणाम और संज्ञानात्मक विकास में सुधार हो सके। उन्होंने कहा, हम अब 121 भाषाओं में प्राइमर (पुस्तकें) विकसित कर रहे हैं, जो इस साल तैयार हो जाएंगे और इससे स्कूल जाने वाले बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ने में मिलेगी।ै
सकलानी ने कहा, हम अंग्रेजी में रटना शुरू कर देते हैं और यहीं से ज्ञान की हानि होती है। भाषा एक सक्षम कारक होनी चाहिए, इससे अक्षम नहीं होना चाहिए। अब तक हम अक्षम थे और अब बहुभाषी शिक्षा के माध्यम से हम खुद को सक्षम बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
वर्ष 2020 में अधिसूचित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने सिफारिश की थी कि जहाँ भी संभव हो, कम से कम कक्षा पांच तक शिक्षा का माध्यम घरेलू भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्र की भाषा होनी चाहिए। नीति ने सिफारिश की कि मातृभाषा में शिक्षण अधिमानत: कक्षा 8 और उससे आगे तक होना चाहिए। इसके बाद, जहां भी संभव हो, घरेलू या स्थानीय भाषा को भाषा के रूप में पढ़ाया जाना जारी रहेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल कहा था कि शिक्षा में मातृभाषा के इस्तेमाल ने भारत में छात्रों के लिए ैन्याय का एक नया रूपै शुरू किया है, और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक बहुत महत्वपूर्ण कदम करार दिया था। इस कदम की विभिन्न हितधारकों और विपक्षी दलों ने भी आलोचना की। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जा रही है।
पिछले साल अधिसूचित नए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे (एनसीएफ) के अनुसार, कक्षा 9 और 10 के छात्रों को अब अनिवार्य रूप से तीन भाषाओं का अध्ययन करना होगा, जिसमें दो भारतीय मूल भाषाएं शामिल हैं, जबकि कक्षा 11 और 12 के छात्रों को एक भारतीय और एक अन्य भाषा का अध्ययन करना होगा। कक्षा 12 की संशोधित राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में बाबरी मस्जिद का उल्लेख न करके उसे तीन गुंबद वाली संरचना के रूप में संदर्भित करने के कारण एनसीईआरटी विवाद के केंद्र में है।
कक्षा 11 की नई राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में अब कहा गया है कि राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति पर नज़र रखते हुए ैएक अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देते हैंै, जिससे अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण होता है। यह 2023-24 के शैक्षणिक सत्र तक जो पढ़ाया जाता था, उससे पूरी तरह से अलग है – कि अगर छात्र गहनता से सोचें, तो उन्हें पता चलेगा कि इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि वोट बैंक की राजनीति देश में अल्पसंख्यकों के पक्ष में है।
