बेंगलुरु। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के भौतिकविदों ने अपरिमेय संख्या पाई के निरूपण के लिए एक नई श्रृंखला का पता लगाया है। बेंगलुरु स्थित संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। यह उच्च-ऊर्जा कणों के क्वांटम प्रकीर्णन जैसी प्रक्रियाओं को समझने में शामिल गणनाओं से पाई निकालने का एक आसान तरीका प्रदान करता है। नया सूत्र 15वीं सदी में, भारतीय गणितज्ञ संगमग्राम माधव द्वारा सुझाए गए विचार के बहुत निकट है, जो पाई के लिए इतिहास में दर्ज की गई पहली श्रृंखला थी। बयान में कहा गया है कि यह अध्ययन शोधार्थी अर्नब साहा और सेंटर फॉर हाई एनर्जी फिजिक्स (सीएचईपी) के प्रोफेसर अनिंदा सिन्हा द्वारा किया गया था। यह अध्ययन पत्रिष्ठित पत्रिका फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। बयान के अनुसार, हालांकि इस स्तर पर मिला निष्कर्ष सैद्धांतिक हैं, लेकिन संभव है कि वे भविष्य में व्यावहारिक अनुप्रयोगों की ओर ले जाएं। सिन्हा ने कहा कि पॉल डिरक ने 1928 में इलेक्ट्रॉनों की गति और अस्तित्व की दिशा में काम किया, लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनके निष्कर्ष बाद में पॉजिट्रॉन की खोज और फिर पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी के लिए सुराग प्रदान करेंगे, जिसका उपयोग रोगों से ग्रसित होने पर शरीर के अंगों को स्कैन करने के लिए किया जाता है।
सिन्हा ने कहा, शुरू में, हमारा प्रयास पाई को देखने का तरीका खोजने का नहीं था। हम केवल क्वांटम सिद्धांत में उच्च-ऊर्जा भौतिकी का अध्ययन कर रहे थे और कणों के परस्पर क्रिया के तरीके को समझने के लिए कम और अधिक सटीक मापदंडों के साथ एक मॉडल विकसित करने की कोशिश कर रहे थे। जब हमें पाई को देखने का एक नया तरीका मिला, तो हम काफी उत्साहित थे।
